हर हुस्न में तुम्हे ही निखरते देखा है !!!

जब से तुम्हे अपने बाग में टहलते देखा है ।
हर फूल  में बस तुम्हे ही महकते देखा है ।
बातों-बातों में ऐसा क्या कह गयी तुम
हर लब्ज में बस तुम्हे ही संवरते देखा है ।
जिसको भी देखा सब बदले -बदले से लगे
हर दिल में बस तुम्हे ही धड़कते देखा है ।
 सूरज हो ,चाँद हो ,या जलता कोई दिया
हर उजाले में बस तुम्हे ही चमकते देखा है ।
किस-किस की तारीफ़ करूं,सब हसीं है,क्योकि
हर हुस्न में बस तुम्हे ही निखरते देखा है ।