जिंदगी मेरी, इक साँझ सी !!!

है मौसम कोई पतझड़ का
 और जिंदगी मेरी, इक साँझ सी
 जहाँ टूटे पत्तो से बने झरोखे 
 इन झरोखों से झांकती तुम
 तुम जो बैठी हो आसमाँ की सेज पर
 जैसे तुम ही हो वो साँझ का चाँद
 चाँद जो रोशन करता है मुझे 
चाँद जो चलना सिखाता है मुझे
 चाँद जो भर जाता है हर साँझ मुझमे 
मुहब्ब्त के कुछ नए अफ़साने
 चाँद जो कहता है मुझसे की आओ, 
मेरे पास आओ मेरी दुनिया में आओ
 आकर चूम लो मुझे, हौले से 
की किसी को खबर तक न हो
 हमारे मिलने की !!!

ख्वाहिशें तुमसे मिलने की !!!

तुम्हे तो खबर भी नही होगी 
कहीं तुम्हारी नजरों से दूर
 तुम्हारी चाहत में बिछी होंगी
 किसी की पलकें न जाने कब से......
 कोई बेक़रार होगा 
 तुम्हारी आँखों के आईने में 
 खुद को झाँकने को
 आंखें तुम्हारी 
 जो कभी झील सी ठहरी 
 तो कभी बर्फ सी सफ़ेद, सुंदर 
डूबी रहती हैं किसी की चाहत में.... 
कोई छूना चाहता होगा ओंठ तुम्हारे
 जो गुलाब जैसे मुरझाते नही हैं 
 वो तो खिले रहते हैं हमेशा 
 जैसे स्वर्ग में खिले किसी फूल की पंखुड़ियां ......
 कोई सुनना चाहता होगा तुम्हारी आवाज,
 जिसमे मिसरी सी घुली है 
जैसे सुबह के वक़्त 
 किसी सुनहरी कोयल की कूंक .....
 वह बसना चाहता होगा तुम्हारे मन में 
तुम्हारा मन जो साफ़ है बहते पानी की तरह
 स्वच्छ है पिघली बर्फ के जैसे 
और विशाल इतना जैसे हिमालय की कोई वादी !!!
 झाँक कर देखो कभी उसे अपने अंदर
 और खुद को मिटा दो इस कदर
 उसके प्यार में की दोनों की
 चाहत मिलकर एक हो जाये !!!

सिलवटें, चादर की !!!

सितारों से भरे आसमान के नीचे 
दूर कहीं से बरसती चांदनी
 और पल पल पिघलती रात 
 उसी पल के संग संग 
हमारे तुम्हारे पिघलते कुछ ख्वाब....
खुली छत पर बिछी चादर 
उस पर अंगडाईयाँ लेती तुम
 रख देती हो अपने हाथ 
मेरे हाथो पर !!
 मैं भी तो करवट बदलता हूँ 
 और भर लेता हूँ तुम्हे 
अपनी बाँहों में
 तुम बंद कर लेती हो 
अपनी आँखें
 और उमड़ने लगती हैं ख्वाहिशें 
 जो कब से 
किसी चादर की सिलवट में सिमट कर
 शर्माती रहीं थीं !! 
सिलवटें अब मुस्कुरा रही हैं
 और चाह रही हैं
 इसी तरह वह हमेशा चादर पर बनी रहें
 और गवाही देती रहें हम दोनों के एक होने की !!!

बादल., जो बरस नहीं पाए !!!

मैं कह नही पाया तुमसे 
लेकिन कल देखा था मैंने 
तुम्हारी आँखों में 
छोटे छोटे छिटके हुए उदास
तनहा बादल !
 बादल जो बरसना चाहते थे 
 किसी के कन्धों पर 
 या शायद महसूस करना चाहते थे 
 किसी मर्द के सख्त हाथों को 
 लेकिन अफ़सोस..... वो नही बरस पाये !
 बादल, वो बरसते भी तो किस पर 
कौन समझता उन्हें,
 वो जो आज तक खुद को ही नही समझ पाये
 या वो जो आँखों में नहीं 
बस बदन को निहारते रहते हैं ! 
या शायद वो डर रहे हैं 
 कि कहीं उन्हें यूँ बरसता देख कोई हंस ना दे !!

जुदा कभी न होंगे हम !!!

धीरे धीरे देखो शाम जा रही कहीं
 तारों को लेके संग, है रात आ रही 
 चाँद मेरे छत पे आ, बुला रहा
 हमें चांदनी दे रही छाँव है हमें 
ठंडी ठण्डी सी बयार गीत गा रही 
 नींद गा के लोरियाँ हमें सुला रही 
 ऐसे में तुम उठो, जरा सा निगाह लो मुझे 
 बहक रहा हूँ मैं जरा, संभाल लो मुझे
 फिर लेके तुम चलो मुझे कहीं ऐसे जहाँ
 झूमती हो फिजा, पारियां नाचती हो वहां
 फिर लेके बाहों में मुझे झूल जाना तुम 
 आँखों में बसा के, सीने से लगाना तुम 
 जब रात हो आधी , मेरे पास आना तुम
 लेके हाथ मेरा, अपने गालों पे लगाना तुम
 यूँ ही साथ साथ सारी रात घूमेंगे हम 
 हो जुदा ये दुनिया सारी, जुदा कभी न होंगे हम ...
 जुदा कभी न होंगे हम ,,, 
जुदा कभी न होंगे हम !!!

चाँद आईना बने हमारा !!!

कहीं दरिया किनारे वो डूबती शाम
 कहीं निखरती चांदनी तो चमकता चाँद
 वहीँ ठंढ ओढ़े वो कांपती रात 
 उन्हीं लम्हों में कहीं गुजारिश करते बस मैं और तुम
 गुजारिश की वो नदी निर्मल कर दे 
 हमारे तन मन को इस कदर
 जैसे ॐ के जटा से निकली गंगा की पवित्र धारा ! 
चांदनी कुछ इस कदर टूटकर बरसे हम पर
 की हम देख लें एक दूसरे के मन के आर पार
 जिसमे बस हमीं बसें हो सदा सदा के लिए ! 
चाँद ऐसा आईना बने हमारा 
 जिसमे रात भर देखें हम 
तब भी हमें बस एक जिस्म दिखाई दे
 जैसे दो रूह एक हो गयी हों !
 ठंडी रात मेहरबान हो हम पर ऐसे 
की तेरे जिस्म की पिघलती हर आरजू 
मेरे सीने में कहीं जा बसे 
 और हर रात वो पूरी हो 
 आहिस्ता आहिस्ता करके !!!

छू गयी थीं मेरी उँगलियाँ !!!


याद नहीं हैं मगर 
कभी ये भी हुआ था...
कि अनजाने में ही मगर 
छू गयी थीं
मेरी उँगलियाँ उनसे ....
सहमकर उसने खींच लीं थी
अपनी हथेलियाँ पीछे...
थोड़ी ही देर में मगर 
उसने रख दिए थे अपने हाथ
मेरे हाथों पर ......
और तभी बहुत धीरे से मगर 
कह दिया था उसकी आँखों ने 
कि तुम्हारे पास होने का अहसास 
अच्छा लगता है मुझे !!!

दो रूहों को हो जाने दो एक !!!


अब और कब तक , आखिर कब तक
मैं अपने अंदर बाँध कर रखूं
उमड़ जाने को तैयार इन तूफानों को 
अब नहीं सहा जाता है मुझसे इस तरह 
जज्बातों को सकुचाये हुए रखना 
जो बस तुम्हारी ही तरफ देख रहे हैं 
कि कब तुम प्यार से इन्हें अपना लोगी
देखो मैं नही जानता तुम्हारे मन की बात 
लेकिन तोड़ रहा हूँ मैं आज अपने बाँध 
कि मेरे शब्द तुम्हे भिगोने को बेताब हैं 
जरा इधर देखो , तुम देखो मेरी आँखों में 
एक प्यास ठहरी सी है इन काले घेरों में
जो बस तुम्हारे बरसने की राह देख रही है ।।
जब आँखों से नीचे उतरो , तो जरा देखना
जरा ध्यान से देखना इन ओंठो को 
जो न जाने कब से तड़प रहे हैं 
तुम्हारे ओंठों पर जाकर ठहर जाने को ।।
बस इतना ही नही है, सुनो 
ध्यान से सुनो मेरी रूह की आवाज
जो फ़रियाद कर रही है तुमसे 
कि उसे मिला लो तुम खुद में,
और दो रूहों को हो जाने दो एक 
इस जनम,अगले जनम और सातों जनम तक !!!

कितना बदल गए हो तुम !!!

इक चुपचाप सी शाम में जहाँ हवा ठहर सी गयी थी जहाँ बस 1 गज के फासले में 4 साल का इन्तजार छुपा बैठ था बेंच जिस पर हम बैठे थे, खुश थी हमें फिर से एकसाथ देखकर ।। बेंच के सामने वाला फूल आज मस्ती में नाच रहा था जो कभी हमें देखकर जलन के मारे सिर घुमा लेता था ।। उन खामोशियों में बिन आवाज उसने अपना बैग खोला कुछ ढूंढा और वापस बंद कर दिया कहा कुछ भी नहीं.. मैं भी तो नही पूछ पाया बस देखता रहा उसके चेहरे को चुपके से , तिरछी निगाहों से सब ठहरा हुआ , मैं , वो , आवाज वह हिली , इस बार अपनी जुल्फों के लिए जुल्फें सही हुई, ओंठ बुदबुदाये मगर आवाज ...वह तो अब भी नही हुई इन्तजार लंबा होता रहा शाम गहराती गयी दिल में कुछ आता रहा, जाता रहा जब ओंठ थक गए चुप रहकर मन हुआ कि कह दूँ अभी भी वहीँ आँखें, वही जुल्फें वही चुप सा रहना , बिलकुल नही बदली तुम और देखो मैं भी तो नही बदला तुम्हे चाहता हूँ उसी तरह अब भी की मेरे कुछ कहने से पहले ही आवाज हुई और कह दिया उसने कितना बदल गए हो तुम ।।।

तुम आओगी एक दिन !!!


मुझे यकीन है कि तुम आओगी
तुम आओगी एक दिन , मेरी जिंदगी में 
ऐसे नही जैसे आज तक आती रही हो, इस बार
तुम आओगी सूरज की मखमली किरणों की तरह 
तुम आओगी चाँद की शीतल चांदनी की तरह 
तुम आओगी मेरी उम्मीद बनकर 
तुम आओगी मेरी प्यास बनकर 
तुम उजाले का वह रूप बनोगी 
जो मेरे अंदर के उस अँधेरे को मिटा देगा 
जिसके पार मैं कभी देख नही पाया
तुम आँखें दोगी मुझे, अपनी रूह में झांकने को
और पा लूँगा मैं तुम्हे अपनी रूह के हर हिस्से में 
हमेशा हमेशा के लिए , जैसे 
तुम्हारी रूह मेरी ही रूह में पनाह ले रही हो ।।।

हाँ, वह अब जीना सीख गयी है |


उसकी देह तप रही है | उसका माथे पर पसीने की बूंदे ठहरी हुई हैं और कभी ज्यादा बोझ हो जाने से बह भी जाती हैं | सर्दी से उसके गले में खराश हो गयी है और उसके सिर में इतना दर्द है कि सहन न होने से वह अक्सर कराह उठती है | मगर वह खुश है क्योंकि वह उम्मीद कर रही है कि यह सुनकर उसे देखने, उससे मिलने वो आएगा जिसे देखे हुए उसे अरसा हो गया है | वो आएगा और उसे अपनी बाहों में समेट लेगा, उसे सहारा देगा, सांत्वना देगा, उसकी देखभाल करेगा और इन सब से बढ़कर वो दोनों फिर से एक हो जायेंगे | फिर से मुहब्बत की कलियाँ खिलेंगी | फिर से दिल जवां होंगे | फिर से एक ही थाली में दोनों खाना खायेंगे और फिर से दोनों एक ही गिलास से पानी पियेंगे | वह अपना मनपसंद धारावाहिक देखने के लिए टीवी खोलेगी मगर वह उसके हाथ से रिमोट छीनकर चैनल बदल देगा | वह मोटरसाइकिल पर बिठाकर उसे घुमाने ले जायेगा और रस्ते में जान बूझ कर तेजी से ब्रेक मारेगा | सड़क के किनारे रूककर वह नारियल पानी वाले से पूछेगा कि भैया नारियल पानी कितने का है ? कीमत मालूम होने पर वह बस एक ही नारियल खरीदेगा जिसमे २ स्ट्रॉ होंगे | झील के किनारे पहुंचकर वह उसे पानी में गिराने के लिए धेकेलेगा और खुद ही रोक लेगा | 
लेकिन ऐसा कुछ भी नही होता | उससे मिलने कोई नही आता | उसका खुद को इस कदर बीमार करना अब व्यर्थ सा लगने लगता है | अब उसकी आँखों में उम्मीद की जगह पानी की कुछ ठहरी हुई बूँदें है जिन्हें वह बहाना नहीं चाहती | अब वह उदास है, अब उसे दर्द हो रहा है जिसे वह अपनी धमनियों में महसूस करती है | लेकिन यह दर्द उसके बीमार बदन की वजह से नहीं है | यह दर्द तो उसकी आत्मा में हो रहा है जो उसे इस दुनिया में रहने वाले हाड मॉस से बने लोगों ने दिए हैं | जो हर बार यह दिखावा करते हैं कि वह उसके अपने हैं लेकिन वास्तविकता इससे भिन्न होती है | वह तो बस किसी नाजुक सी लड़की का दिल तोड़ सकते हैं, उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं और इस अहसास के साथ जीने के लिए छोड़ सकते हैं कि इंसान का साथ बस दर्द ही दे सकता है | वह यह जान लेती है की इस दुनिया में अपने सिवा और कोई अपना नही है | वह उन सब से नफरत करना चाहती है जिसे कभी उसने प्यार किया था, अपना माना था, जिनके सपनों के साथ उसने अपने भी सपने जोड़ दिए थे, जिनके साथ वह आसमान में कभी बड़ी दूर तक उड़ी थी | 
वह उदास होती है, वह हंसती भी है | वह दुआएं देती है, वह गालियाँ भी देती है | वह बोलती है, वह खमोश भी रहती है | वह देखती भी है, अनदेखा भी करती है | वह चलती है, वह ठहर भी जाती है | वह लोगों से मिलती है, वह अकेले भी रहती है | वह प्यार करती है, वह नफरत भी करती है | हाँ, वह सब करती है जो एक दूसरे के विपरीत हैं | हाँ, वह अब जीना सीख गयी है |

तुम भी तो अब बड़ी हो गयी होगी न !!!


आज अपनी अलमारी देख रहा था 
ऑफिस की कुछ फाइलें ढूंढ रहा था 
कि हवाओं का एक झोंका 
अचानक खिड़की से अंदर आया 
और फड़फड़ाते हुए खोल गया 
उस विज्ञान की किताब का आखिरी पन्ना 
जिसे देखकर मम्मी ने मुझे तमाचा मारा था 
हाँ....उस पन्ने पर तुम्हारा ही तो नाम लिखा था !!
.
देखो न अभी भी लिखा हुआ है,
बस स्याही थोड़ी फ़ैल गयी है 
तुम्हारा नाम बड़ा हो गया है 
तुम भी तो अब बड़ी हो गयी होगी न !!!

झटक दो अपना आँचल !!!

कई दिनों बाद कभी
जब बीत जाए शीत ऋतु
तुम आओ जरा वसंत से पहले
और झटक दो अपना आँचल
मेरे ऊपर कुछ इस तरह
कि मेरा रोम रोम भर जाए
तुम्हारे प्यार में इतना
जैसे पतझड़ के मौसम में
सड़क को भर देते हैं
टूट कर गिरे हुए
गुलमोहर के लाल पीले पत्ते |

मैं तुमसे चिढ़ता था |

मैंने तुम्हे कभी बताया नहीं लेकिन मैं तुमसे चिढ़ता था | मैं तुमसे चिढ़ता था क्योंकि तुम क्लास में हमेशा प्रथम आते थे और मैं बस जैसे तैसे पास हो पाता था | मैं तुमसे चिढ़ता था क्योंकि टीचर तुम्हारी पीठ थपथपाते थे और मुझे मुर्गा बना देते थे | मैं तुमसे चिढ़ता था क्योंकि क्लास की लड़कियों के लिए तुम हीरो थे और मैं विलेन की तरह देखा जाता था | मैं तुमसे चिढ़ता था क्योकिं तुम्हें देश की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला और मुझे अपने ही शहर में एक छोटी सी यूनिवर्सिटी में पढाई करनी पड़ी | मैं तुमसे चिढ़ता था क्योंकि तुम्हें एक टॉप क्लास (जिसका नाम सब जानते थे ) कंपनी में नौकरी मिली और मुझे एक छोटी सी कंपनी नसीब हुई | मैं तुमसे चिढ़ता था क्योकिं जल्द ही तुमने बड़ी सी गाड़ी खरीद ली और मेरे पास वही २ पहिये वाली मोटरसाइकिल थी |
लेकिन उस रात जब मैं अपनी प्रियवर के साथ छत पर बैठा बिखरी चांदनी को निहार रहा था कि करीब ११ बजे जब मैंने तुम्हे अपनी गाड़ी से आते देखा तो मुझे तुमसे बिलकुल भी चिढ़ नही हुई | तुम्हें देखकर मुझे निराशा हुई | मुझे तुम पर तरस आया |

सुबह जब मैं नींद में अंगडाइयां ले रहा था तब तुम गाड़ी में बैठ रहे थे | उस वक़्त मुझे तुम्हारे माथे पर शिकन, परेशानी, और डर की जो रेखाएं दिखाई दी मुझे तुमसे बिलकुल भी चिढ़ नही हुई | तुम्हें उस हाल में देखकर मुझे दुःख हुआ, सहानभूति हुई और मैंने तुम्हे बड़े ही रहमदिली वाली नजरों से देखा | तुम्हारे जाने के बाद मैंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद किया कि उन्होंने मुझे क्लास में प्रथम नहीं आने दिया था | 

वो रास्ता याद रखना !!!

जिस सड़क से गुजरो वो रास्ता याद रखना 
कभी लौटने का मन हो तो पता याद रखना !
सफ़र में कोई हमसफ़र जो अच्छा लगे बहुत 
दिल की बात ओंठों पर लाना याद रखना !
रात में सितारे अगर बहुत हों फलक पर
  चाँद के साथ साथ मुझे देखना याद रखना !
थक जाओ जो बहुत और मंजिल न दिखे
आसमां में परिंदों का उड़ना याद रखना !

अँधेरे की बाहों में मिलो कभी !!!

जहाँ हमें कोई जानता न हो उस गुमनाम रास्ते पर मिलो कभी 
 बीते दिन बीती यादें भूलकर कुछ कदम मेरे साथ चलो कभी |
रूबरू होगी एक नयी जिंदगी , हंसी के कहकहे फिर से गूजेंगे 
चमकते सितारों से भरे आसमान की सेज पर चाँद सा मिलो कभी ।
 बहारों का क्या है देख लेना वो भी चली आएँगी पीछे तुम्हारे
 किसी रंग बिरंगी शाम में फूलों से भरे बगीचे में मिलो कभी ।
 वक़्त भी जी उठेगा तुम्हारी जिंदगी के फ़साने में इतनी खुशियाँ होंगी 
 वक़्त की नजरों से दूर, घनघोर अँधेरे की बाहों में मिलो कभी ।

चुपके चुपके रोई होंगी ???


आज दिल कुछ उदास सा है 
तनहा, अकेला और गुमसुम सा 
रात की बाहों में बैठा 
ना जाने क्या सोच रहा है |
शायद सोच रहा है अपनी बेरंग जिन्दगी के बारे में 

कभी कुछ रंग भरने चाहे होंगे इसमें 
लेकिन किस्मत दगा दे गयी होगी 
आज अलसाए से चाँद की रोशनी में 
शायद वो अपने टूटे सपनों को समेट कर 
उन्हें जोड़ने की सोच रहा है |
या शायद टूटे तारों को देखकर सोच रहा है 
कितने रिश्ते टूटे हैं उसके
कितने टूटने वाले हैं ?
कितनी बार आँखें भर आई हैं 
कितने आंसू बहने अभी बाकी है ?
कौन अपना बनकर छोड़ गया 
कौन अपना बनाने वाला है ?
या फिर पिघलती रात के संग संग
वह सोच रहा है उस बीते लम्हों को 
उन बचपन वाली बातों कों 
वो नंगे धड़ंगे दोस्त गरीब 
पर दिल के थे सब बड़े अमीर
इस चकाचौंध सी दुनिया में 
वे बेचारे अब कैसे होंगे
क्या मेरे जैसे उनके दिल भी 
कतरा कतरा टूटे होंगे ???
क्या उनकी आँखें भी मेरे जैसे 
चुपके चुपके रोई होंगी ???