अँधेरे की बाहों में मिलो कभी !!!

जहाँ हमें कोई जानता न हो उस गुमनाम रास्ते पर मिलो कभी 
 बीते दिन बीती यादें भूलकर कुछ कदम मेरे साथ चलो कभी |
रूबरू होगी एक नयी जिंदगी , हंसी के कहकहे फिर से गूजेंगे 
चमकते सितारों से भरे आसमान की सेज पर चाँद सा मिलो कभी ।
 बहारों का क्या है देख लेना वो भी चली आएँगी पीछे तुम्हारे
 किसी रंग बिरंगी शाम में फूलों से भरे बगीचे में मिलो कभी ।
 वक़्त भी जी उठेगा तुम्हारी जिंदगी के फ़साने में इतनी खुशियाँ होंगी 
 वक़्त की नजरों से दूर, घनघोर अँधेरे की बाहों में मिलो कभी ।

चुपके चुपके रोई होंगी ???


आज दिल कुछ उदास सा है 
तनहा, अकेला और गुमसुम सा 
रात की बाहों में बैठा 
ना जाने क्या सोच रहा है |
शायद सोच रहा है अपनी बेरंग जिन्दगी के बारे में 

कभी कुछ रंग भरने चाहे होंगे इसमें 
लेकिन किस्मत दगा दे गयी होगी 
आज अलसाए से चाँद की रोशनी में 
शायद वो अपने टूटे सपनों को समेट कर 
उन्हें जोड़ने की सोच रहा है |
या शायद टूटे तारों को देखकर सोच रहा है 
कितने रिश्ते टूटे हैं उसके
कितने टूटने वाले हैं ?
कितनी बार आँखें भर आई हैं 
कितने आंसू बहने अभी बाकी है ?
कौन अपना बनकर छोड़ गया 
कौन अपना बनाने वाला है ?
या फिर पिघलती रात के संग संग
वह सोच रहा है उस बीते लम्हों को 
उन बचपन वाली बातों कों 
वो नंगे धड़ंगे दोस्त गरीब 
पर दिल के थे सब बड़े अमीर
इस चकाचौंध सी दुनिया में 
वे बेचारे अब कैसे होंगे
क्या मेरे जैसे उनके दिल भी 
कतरा कतरा टूटे होंगे ???
क्या उनकी आँखें भी मेरे जैसे 
चुपके चुपके रोई होंगी ???