छू गयी थीं मेरी उँगलियाँ !!!


याद नहीं हैं मगर 
कभी ये भी हुआ था...
कि अनजाने में ही मगर 
छू गयी थीं
मेरी उँगलियाँ उनसे ....
सहमकर उसने खींच लीं थी
अपनी हथेलियाँ पीछे...
थोड़ी ही देर में मगर 
उसने रख दिए थे अपने हाथ
मेरे हाथों पर ......
और तभी बहुत धीरे से मगर 
कह दिया था उसकी आँखों ने 
कि तुम्हारे पास होने का अहसास 
अच्छा लगता है मुझे !!!