सिलवटें, चादर की !!!

सितारों से भरे आसमान के नीचे 
दूर कहीं से बरसती चांदनी
 और पल पल पिघलती रात 
 उसी पल के संग संग 
हमारे तुम्हारे पिघलते कुछ ख्वाब....
खुली छत पर बिछी चादर 
उस पर अंगडाईयाँ लेती तुम
 रख देती हो अपने हाथ 
मेरे हाथो पर !!
 मैं भी तो करवट बदलता हूँ 
 और भर लेता हूँ तुम्हे 
अपनी बाँहों में
 तुम बंद कर लेती हो 
अपनी आँखें
 और उमड़ने लगती हैं ख्वाहिशें 
 जो कब से 
किसी चादर की सिलवट में सिमट कर
 शर्माती रहीं थीं !! 
सिलवटें अब मुस्कुरा रही हैं
 और चाह रही हैं
 इसी तरह वह हमेशा चादर पर बनी रहें
 और गवाही देती रहें हम दोनों के एक होने की !!!

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