बादल., जो बरस नहीं पाए !!!

मैं कह नही पाया तुमसे 
लेकिन कल देखा था मैंने 
तुम्हारी आँखों में 
छोटे छोटे छिटके हुए उदास
तनहा बादल !
 बादल जो बरसना चाहते थे 
 किसी के कन्धों पर 
 या शायद महसूस करना चाहते थे 
 किसी मर्द के सख्त हाथों को 
 लेकिन अफ़सोस..... वो नही बरस पाये !
 बादल, वो बरसते भी तो किस पर 
कौन समझता उन्हें,
 वो जो आज तक खुद को ही नही समझ पाये
 या वो जो आँखों में नहीं 
बस बदन को निहारते रहते हैं ! 
या शायद वो डर रहे हैं 
 कि कहीं उन्हें यूँ बरसता देख कोई हंस ना दे !!

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