बेशक़ीमती गहने हों जैसे !!!


शर्म हया लाज घूंघट मुस्कराहट उसने पहने हैं कुछ ऐसे 
बड़ी दुर्लभता से मिलने वाले बेशक़ीमती गहने हों जैसे !!
जलती तपती उड़ती रेतों को वो अंजलि में यूँ भरती है 
मेले में खोकर फिर मिलने वाले उसके बच्चे हों जैसे !!
थमते बहते गिरते अश्कों को चूमती है जो नजरों से ही 
निकल कैद उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले सपने हों जैसे !!
रूकती चलती थकती आगे बढ़ते ही जाना है उसको 
सारी दुनिया के गम निपट अकेले ही सहने हों जैसे !!!

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