इक रात जो बसर हो जाए !!!

जिन्दगी में नौबहार की मुसलसल सहर हो जाए 
तुम्हारी बाहों में मेरी इक रात जो बसर हो जाए !
 ये रुखसार, ये पेशाने, ये साहिर आँखें तुम्हारी
जो निकलें नकाब से बाहर तो ग़ज़ल हो जाए !
नाओनोश भी, मदहोश भी, अहसास जफ़र का हो
तुम्हारी इनायत का जिस पर भी असर हो जाए !
कभी चाँद को जो देखो तुम आँखों में भरकर
रात का जैसे किसी सब्जपरी से मिलन हो जाये !
जिस रहगुजर से तुम गुजर जाओ, राहें कदम चूमे
अफ़सुर्दा उजाड़ सफ़र भी जाज़िब बदन हो जाए !!
अफ़सुर्दा – उदास
नाओनोश-  दावत करना
जफ़र- जीत 
साहिर – जादूगरी

जाज़िब – आकर्षक 

No comments:

Post a Comment