हाँ, तुम्हे देखा है हमने Happy !!!


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महकती रात के आंचल से पिघलती चांदनी 

जब जर्रे जर्रे में समा कर सिमटने लगी हो 
दूर कहीं बादलों, नदियों, पहाड़ों के पीछे
सुनहला सूरज जब अगड़ाईंयां लेने लगा हो 
पहर जब महताब की मखमली चांदनी 
आफ़ताब की किरणों से मिलने लगी हो 
वो नूर भोर का कभी देखा है किसी ने...
हां, देखा है तुम्हारे चेहरे पर वही नूर हमने !
घने कोहरे से ढकी कोई भीगी रात जब 
सुबह होते ही अपनी चादर समेटने लगे 
किसी पेड़ के पत्ते से इक बूंद शबनम की 
फिसलती हुई किसी कली पर गिर जाए 
गिर के छिटक जाए,हर तरफ बिखर जाए 
उस बिखरती बूंद से बरसती मुहब्बत में
एक कली को फूल बनते देखा है किसी ने
हाँ, देखा है तुम्हे ऐसे ही खिलता हुआ हमने !

9 comments:

  1. इतने गहरे विचार बहुत खूब
    मैंने हाल ही में ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन करना चाहती हूं कि आप मेरे पोस्ट को पढ़े और मुझे सही दिशा निर्दश दे
    https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 28 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह , इतने सुंदर बिम्ब और तुम्हें देखा है ।
    गज़ब चाँद उतर इस रचना में ।

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  4. बहुत बढियां सृजन

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  5. बहुत खूबसूरत नज़्म है ...
    गहरा एहसास और नए बिम्ब लिए लाजवाब केनवस खड़ा किया है ...

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