तुम जो बसी हो मुझमें, सम्पूर्ण !!!

हाँ, मैं नही समझ पाता तुम्हे
तुम्हारे जेहन में उठते ख्यालों को
जो शाख से लगे किसी पत्ते की तरह
कभी इस ओर तो कभी उस ओर लुढ़क जाते हैं....
हाँ मेरी आँखें नही पढ़ पाती हैं
तुम्हारे चेहरे पर लिखे भावों को
जो हर पल बदल जाते हैं.....
हाँ नहीं समझ पाता हूँ मैं
तुम्हारे खामोश इशारों को
जो कभी स्पष्ट होते ही नहीं....
हाँ बस इतना जानता हूँ
मोहब्बत थी तुमसे, बेपनाह, है भी
कभी ख़तम भी नही होगी ये
बस क्षीण होती रहेगी धीरे-धीरे
फिर भी तुम बची रह जाओगी अंत तक
कहीं दिल के किसी कोने में सम्पूर्ण !!!